महिला सशक्तिकरण की मिसाल – लीला देवी
आजीविका का साथ.. गरीबी को मात...
वो कहते है न जिंदगी जब एक रास्ता बंद करती है
तब उसके साथ-साथ कई और रास्ते खुल जाते है । जरुरत है तो उसे पहचान कर आगे बढ़ने की
। नगड़ी प्रखंड की लीला देवी की कहानी भी प्रेरणा का एक श्रोत है , की कैसे तमाम
मुश्किलों को पार कर आज वो इस मुकाम तक पहुंची है । और रोशनी की वो एक किरण दिखाने का काम किया है – झारखण्ड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी ने ।
लीला देवी कहती है –“ जहां चाह है वहां राह
है, और मुश्किलों से घबराना नही चाहिए बल्कि उसका सामना करना चाहिए,लड़ना चाहिए तभी
आप मंजिल तक पहुँच पाएंगे” ।
लीला दीदी आज अपने गाँव की सक्रिय महिला है और अपने
आजीविका के साथ-साथ दुसरो के आजीविका को भी बढ़ाने का काम करती है । लेकिन उनकी जिंदगी
हमेसा से इतनी आसान नहीं थी । लीला का बचपन कठिनाइयों और गरीबी के अंधकार में बीता,
पिताजी के शराब की लत ने पुरे परिवार को बिखेर कर रख दिया था । दूर-दूर तक गरीबी
छाई हुई थी, मजबूरन जमीन का टुकड़ा भी साहूकार के पास गिरवी रखना पड़ा । लेकिन परेशानी
का पहाड़ तब टूट पड़ा जब पैसे की किल्लत और बुनियादी स्वास्थ्य सुविधा न होने के कारण उनके भाई की जान चली गई । अभी घर संभला भी नही था की बेटी को बोझ समझ उसकी शादी कर
दी गयी । बाकि लड़कियों की तरह ही लीला के भी सैकड़ो ख्वाब थे परंतु लीला के जीवन
में संघर्ष अभी बाकी था । उसके ससुराल की हालत और हालात दोनों उनके मायके की ही
तरह थे । शादी के बाद भी गरीबी ने उनका पीछा नहीं छोड़ा था । दहेज़ न लाने का ताना
अभी कम हुआ भी नहीं था, की बेटी के जन्म के साथ ही उलाहनों का दौर भी शुरु हो गया । तमाम उत्पीड़न के
बाद भी लीला ने हिम्मत और उम्मीद नहीं छोड़ी ।
उसकी इसी हिम्मत और उम्मीद के कारण वो आज अपने
परिवार की आजीविका में अपना योगदान दे पा रही है ।
लीला बताती है की आजीविका मिशन के समूह से जुड़
कर उन्हें नई जिंदगी मिली और उन्होंने कुछ करने की ठानी । लीला लगन और मेहनत से अपने समूह
, ज्योति सखी मंडल को मजबूत करने के लिए काम करने लगी । बुरे दिनों में समूह से
कर्ज लेकर घर का खर्च चलाया, बच्चों के स्कूल का फीस भरी साथ ही खेती भी किया ।
लीला ने अब तक छोटे ऋण के रूप में कुल 15,000 रूपए समूह से लिया और अपने परिवार के
जरूरतों की पूर्ति की । बड़े ऋण लेकर घर बनाया, पति का इलाज़ कराया और
अपनी गिरवी जमीन को वापस लेकर अब उसमे खेती भी करती है ।
लीला एक सक्रिय महिला के रूप में अपने आस पास
के गांवो में अब तक 50 से ज्यादा समूहों का गठन कर चुकी है और प्रशिक्षण भी दे रही हैं । लीला के प्रयाश के कारण ही आज उनके समूह को कृषि उपकरण बैंक के लिए चुना
गया है और गाँव के किशानो को सस्ते दर पर कृषि उपकरण मिल पा रहा है. साथ ही साथ
समूह की भी 15,000 से 20,000 रूपए तक की आमदनी हो रही है. आत्मविश्वास और लगन के कारन ही आज लीला को
उत्पादक समूह के गठन और प्रशिक्षण के लिए दूर प्रखंडो और दुसरे जिलो से भी बुलाया
जाता है.
आज लीला के दोनों बच्चे स्कूल जाते है और खुद
लीला ने भी इंटर की पढाई पूरी कर ली है, अब लीला कभी पीछे मुड़ कर नही देखना चाहती
है, आगे बढ़ना चाहती है और अपने बच्चो को एक उज्वल भविष्य देना चाहती है । आत्मविश्वास से भरी लीला बताती है की वे समूह से ऋण लेकर अपने पति के लिए ऑटो लेना
वाली है, ताकि उसके पति को रोजगार के लिए कहीं भटकना ना पड़े ।
To follow us, click the link below:
Comments
Post a Comment